बाबा देवी दास और लाला जय सिंह का इतिहास बहुत पुराण है/ उस समय भारत में मुगलो का शासन था/ बाबा देवी दास के पूर्वज राजस्थान के जैसलमेर में रामगढ़ के पश्चिम नरेला यादव परिवार में हुआ था/ इनका गोत्र पश्चान था परिवार के दो भाई वीरसिंह और धीरसिंह दिल्ली होते हुए वरण रियासत की तहसील आढ़ा पहुंचे जो दिल्ली से पूर्व दिशा में लगभग ६५ km दूर बसा हुआ है/ एक भाई वीरसिंह आढ़ा में ही ठहर गए और दूसरे भाई धीरसिंह आढ़ा से ३ km पूर्व दिशा में सिसिनीगढ़ ( जिसे वर्तमान में पचौता के नाम से जाना जाता है) आकर बसे/ कुछ समय बाद धीर सिंह को एक पुत्र प्राप्त हुआ/ जिसका नाम हेमराज रखा गया हेमराज की शादी गाजियाबाद के केलाभट्टा से हुई उनकी पत्नी का नाम मुथरी था कुछ समय बाद हेमराज के घर एक पुत्र प्राप्त हुआ/ जिसका नाम देवियाँ रखा गया जो आगे चालकर देवीदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ/ सिसिनीगढ़ को आज लोग पचौता ग्राम और बाबा देवीदास के धाम के नाम से जानते है/ जो उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले जिसका नाम पहले वरण था में पड़ता है/ मुथरी गंगा की बड़ी भक्त जो गंगा स्नान करने के लिए अनूपशहर जाती थी/ और सेठ मथुरापाल की धर्मशाला में ठहरती थी/ सेठ मथुरमल एक भले व्यक्ति थे जो लोगो का भला करते थे/ एक दिन जब मुथरी आपने पुत्र देवियाँ के साथ खेत पर काम करने के लिए गयी तो एक तूफान आता है/ जिसमे देवियाँ गायब हो जाता है/ पुत्र को खोकर मुथरी दुखी मन से घर वापस आती है और गाव वालो को देवियाँ के गायब होने के बारे में बताती है/ तब गांव वाले बताते है कि गाव में तो कोई तूफान नहीं आया था/ लेकिन कुछ समय बाद देवियाँ वापस आ जाता है/ गांव वाले देवियाँ को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते है/ क्योकि देवियाँ स्वाभाविक रूप से पूरी तरह बदल चूका होता है/ वह आपने सम्पूर्ण धन गरीबो में दान करके भगवन की भक्ति मई लीन हो जाता है/ उसकी भक्ति से पूरा गाव और राजा भी प्रभावित होते है और राजा अपनी रियासत के ५ गाव बाबा देवीदास को दे देता है/ लोग दूर - दूर से बाबा देवीदास के दर्शन के लिए ग्राम पचौता आते है/ कुछ समय बाद बाबा देवीदास के ६ पुत्र होते है/ जिनमे सबसे छोटे पुत्र का नाम जय सिंह रखा जाता है/ सभी उन्हें प्यार से लाला कहकर पुकारते थे/ इसलिए इनका नाम लाला जय सिंह पड़ गया/ इनका जन्म श्री कृष्णा जामाष्टमी के बाद नवमी को हुआ था/ जय सिंह जल्द ही चलना आरम्भ कर देते है तथा अपनी बाल लीलाओ से सभी का मन मोह लेते है/ इसलिए जय सिंह को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है/ जब जय सिंह 5 वर्ष के थे तो एक दिन जय सिंह बाबा देवीदास से प्रसाद मांगते है/ जब बाबा देवीदास उन्हें प्रसाद नहीं देते है तो जय सिंह नाराज होकर ढाके की और चले जाते है तथा वही पर समाधि ले लेते है जो भी भक्त जात लगाने के लिए पचौता जाता है/ वो ढाके में लाला जय सिंह के मंदिर के दर्शन करता है/ लाला जय सिंह के ढाके में समाधि ले लेने के कुछ समय बाद बाबा देवीदास भी १२० वर्ष की आयु में आपने शरीर त्याग देते है/ बुजुर्गो से प्राप्त जानकारी और गहन आद्यां के बाद यह जानकारी दी है/ अगर कोई त्रुटि रह गयी है तो क्षमा करे अगर आपके पास इससे सम्बंधित कोई जानकारी हो तो हमें इ-मेल आवश्य करे/ या Feedback दे.
Thursday, 26 June 2014
बाबा देवी दास और लाला जय सिंह का इतिहास
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ReplyDeletejai pachauta baba ji ki
Jai baba devidash jai lala jaisingh
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